
उत्तरकाशी आपदा का दहलाने वाला सच! वैज्ञानिकों ने खोला राज, बारिश नहीं, ‘वो’ था तबाही का असली कारण!
देहरादून/उत्तरकाशी: 5 अगस्त, 2025 की वह मनहूस रात… जब देवभूमि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का शांत धराली गांव जल प्रलय के शोर से कांप उठा था। उस रात आई भीषण आपदा ने दर्जनों जिंदगियों को हमेशा के लिए खामोश कर दिया और कई परिवारों को ऐसे जख्म दिए जो शायद कभी नहीं भरेंगे। आज, घटना के लगभग दो हफ्ते बाद भी, बचाव दल लापता लोगों की तलाश में दिन-रात एक किए हुए हैं। हर कोई यही मानकर चल रहा था कि यह तबाही ‘बादल फटने’ (Cloudburst) की वजह से हुई। लेकिन अब, भू-वैज्ञानिकों की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने इस पूरी धारणा को पलट कर रख दिया है।
वैज्ञानिकों ने जो खुलासा किया है, वह सिर्फ इस आपदा का कारण ही नहीं बताता, बल्कि हिमालय के पहाड़ों में पल रहे एक ऐसे भयानक खतरे की ओर इशारा करता है, जिसके बारे में जानकर आपकी रूह कांप जाएगी। यह सिर्फ बारिश की कहानी नहीं है; यह पहाड़ों के ऊपर छिपे एक ‘टाइम बम’ की कहानी है।
5 अगस्त की उस भयावह रात को क्या हुआ था?
5 अगस्त की देर रात, जब धराली और आसपास के गांवों के लोग गहरी नींद में थे, पहाड़ों में मूसलाधार बारिश हो रही थी। अचानक, आधी रात के करीब, गंगा (भागीरथी) की सहायक नदियों में से एक में पानी का एक ऐसा सैलाब आया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। यह सिर्फ पानी नहीं था; यह अपने साथ भारी मात्रा में बोल्डर, चट्टानें, और मलबा लेकर आया था। इस सैलाब की ताकत इतनी ज़्यादा थी कि इसने अपने रास्ते में आए होटलों, घरों, पुलों और सड़कों को ताश के पत्तों की तरह बहा दिया।
जो लोग जाग गए, उन्हें भागने का भी मौका नहीं मिला। बचाव दलों ने जब सुबह घटनास्थल का जायजा लिया, तो वहां सिर्फ तबाही और मातम का मंजर था। तब से लेकर आज तक, NDRF, SDRF और स्थानीय प्रशासन की टीमें मलबे के ढेर में जिंदगियों के निशान तलाश रही हैं।
वैज्ञानिकों की रिपोर्ट का सनसनीखेज खुलासा: असली मुजरिम GLOF है
आपदा के तुरंत बाद, देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की एक टीम ने क्षेत्र का हवाई और जमीनी सर्वेक्षण शुरू किया। हफ्तों के गहन अध्ययन के बाद, उनकी प्रारंभिक रिपोर्ट सामने आई है, और इसने सबको झकझोर कर रख दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार, यह आपदा केवल बादल फटने का परिणाम नहीं थी। इसका मुख्य और असली कारण था GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड), जिसे हिंदी में “हिमनद झील के फटने से आई बाढ़” कहते हैं।
सरल भाषा में समझें कि GLOF क्या है?
इसे समझने के लिए, कल्पना कीजिए कि पहाड़ों की ऊंचाई पर, ग्लेशियरों के पास एक झील है। यह झील सीमेंट और कंक्रीट से बने बांध से नहीं, बल्कि ग्लेशियर द्वारा लाए गए पत्थरों, बर्फ और मलबे के एक कमजोर, अस्थिर और प्राकृतिक बांध (जिसे ‘मोरेन’ कहते हैं) से घिरी होती है।
जब ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं, तो इन झीलों में पानी की मात्रा खतरनाक रूप से बढ़ जाती है। अब सोचिए, अगर इसी समय उस क्षेत्र में बादल फट जाए या कोई बड़ा हिमस्खलन हो जाए, तो क्या होगा? भारी बारिश का पानी या हिमस्खलन का दबाव उस कमजोर प्राकृतिक बांध को तोड़ देता है।
इसके बाद जो होता है, वह प्रलय है। झील में जमा लाखों क्यूबिक मीटर पानी, बर्फ, चट्टानें और मलबा एक ‘वॉटर बम’ की तरह फट पड़ता है और घाटी में नीचे की ओर अविश्वसनीय गति और ताकत से बढ़ता है, अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को नष्ट कर देता है। धराली में 5 अगस्त को ठीक यही हुआ था।
सबूत क्या हैं? यह सिर्फ बादल फटना क्यों नहीं था?
वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि केवल बादल फटने से पानी का इतना बड़ा और विनाशकारी प्रवाह संभव नहीं था। उन्हें कई ठोस सबूत मिले:
पानी की मात्रा: अनुमान लगाया गया है कि बाढ़ में पानी की मात्रा उस क्षेत्र में हुई बारिश की मात्रा से कई गुना ज़्यादा थी।
मलबे का प्रकार: बाढ़ द्वारा लाए गए मलबे में ग्लेशियल मिट्टी और चट्टानों के विशेष प्रकार के कण पाए गए, जो केवल ऊंचाई वाले हिमनद क्षेत्रों में मिलते हैं।
सैटेलाइट तस्वीरें: आपदा से पहले और बाद की सैटेलाइट तस्वीरों की तुलना करने पर, वैज्ञानिकों ने पाया कि धराली के ऊपर एक उच्च-ऊंचाई वाली हिमनद झील का आकार नाटकीय रूप से कम हो गया था, या वह पूरी तरह से खाली हो गई थी।
एक वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक ने बताया, “बादल फटना वह चिंगारी थी जिसने इस ‘वॉटर बम’ में विस्फोट किया। असली विनाश का कारण उस हिमनद झील का फटना था, जिसके बारे में शायद किसी को पता भी नहीं था।”
क्या यह भविष्य के लिए एक भयानक चेतावनी है?
यह रिपोर्ट सिर्फ धराली आपदा के कारणों का खुलासा नहीं करती; यह पूरे हिमालयी क्षेत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन कोई दूर का खतरा नहीं है, यह हमारे पहाड़ों पर कहर बरपा रहा है।
बढ़ते GLOF का खतरा: ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय के ग्लेशियर दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में दोगुनी तेजी से पिघल रहे हैं। इससे हजारों नई और अस्थिर हिमनद झीलें बन रही हैं। ये झीलें ‘टिक-टिक करते टाइम बम’ की तरह हैं, जो कभी भी फट सकती हैं।
पैटर्न को पहचानें: 2013 की केदारनाथ त्रासदी, 2021 की चमोली आपदा और अब यह धराली की घटना – ये सभी अलग-अलग घटनाएं एक ही खतरनाक पैटर्न की ओर इशारा करती हैं। पहाड़ों में मौसम का मिजाज बदल रहा है और आपदाएं अधिक विनाशकारी होती जा रही हैं।
राहत और बचाव कार्य की वर्तमान स्थिति और आगे की चुनौती
वर्तमान में, प्रशासन का ध्यान अभी भी लापता लोगों की तलाश करने और प्रभावित परिवारों तक राहत पहुंचाने पर है। सड़कें और पुल टूट जाने से कई गांव अलग-थलग पड़ गए हैं, और उन तक आवश्यक सामान पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है।
लेकिन असली चुनौती अब शुरू होती है। इस वैज्ञानिक रिपोर्ट के बाद, सरकार और प्रशासन पर इन अदृश्य खतरों से निपटने का दबाव बढ़ गया है।
खतरनाक झीलों की निगरानी: सबसे पहला कदम हिमालय में मौजूद सभी संभावित खतरनाक हिमनद झीलों की पहचान करना और उनकी निरंतर निगरानी करना है। इसके लिए सेंसर और सैटेलाइट तकनीक का उपयोग आवश्यक है।
प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System): उन गांवों और कस्बों के लिए एक प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करना महत्वपूर्ण है जो इन झीलों के नीचे की ओर स्थित हैं, ताकि आपदा आने पर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके।
निष्कर्ष
धराली की आपदा एक प्राकृतिक घटना से कहीं बढ़कर थी। यह जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास के घातक मिश्रण का परिणाम थी। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट ने उस भयानक सच्चाई को उजागर कर दिया है, जिसे हम लंबे समय से नजरअंदाज करते आ रहे हैं।
यह रिपोर्ट सिर्फ एक त्रासदी की व्याख्या नहीं है, बल्कि भविष्य के लिए एक रोडमैप है। यदि हमने अब भी इन ‘टिक-टिक करते टाइम बम’ को गंभीरता से नहीं लिया और अपनी विकास नीतियों को हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी के प्रति संवेदनशील नहीं बनाया, तो हमें भविष्य में ऐसी और भी विनाशकारी आपदाओं का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। यह देवभूमि के लिए एक अस्तित्व का संकट है, और कार्रवाई का समय अब आ गया है।
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