October 15, 2025
JAN DHAN SHOCKER: 13 Crore Accounts DEAD! Is Modi’s Flagship Scheme Failing?
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JAN DHAN SHOCKER: 13 Crore Accounts DEAD! Is Modi’s Flagship Scheme Failing?

Aug 18, 2025

नई दिल्ली: केंद्र सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी और विश्व की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजनाओं में से एक, प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) को लेकर एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। सरकार द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, योजना के तहत खोले गए कुल 56.04 करोड़ बैंक खातों में से लगभग 23%, यानी करीब 13 करोड़ खाते, पूरी तरह से “निष्क्रिय” (inoperative) हो चुके हैं।

यह आंकड़ा एक बड़े सवाल को जन्म देता है: क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह प्रमुख योजना, जिसे गरीबों और वंचितों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी कदम के रूप में देखा गया था, अपनी चमक खो रही है? क्या 13 करोड़ खातों का निष्क्रिय होना इस योजना की विफलता का संकेत है, या इस कहानी में कुछ और भी है?

इस लेख में, हम इन चौंकाने वाले आंकड़ों की गहराई से पड़ताल करेंगे, यह समझने की कोशिश करेंगे कि इतने सारे खाते “मृत” क्यों पड़े हैं, और विश्लेषण करेंगे कि इस महत्वाकांक्षी योजना का भविष्य क्या है।

आंकड़ों का पूरा विश्लेषण: पर्दे के पीछे की सच्चाई

संसद में वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार, स्थिति इस प्रकार है:

  • कुल जन धन खाते: 56.04 करोड़

  • निष्क्रिय खाते: 12.89 करोड़ (कुल का 23%)

  • कुल जमा राशि: ₹2.5 लाख करोड़ से अधिक

  • महिला खाताधारक: लगभग 56%

  • जारी किए गए रुपे कार्ड: 35 करोड़ से अधिक

सबसे पहले यह समझना महत्वपूर्ण है कि “निष्क्रिय खाता” का क्या अर्थ है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दिशानिर्देशों के अनुसार, एक बैंक खाते को तब निष्क्रिय माना जाता है, जब उसमें लगातार दो वर्षों तक ग्राहक द्वारा कोई लेनदेन (जमा या निकासी) नहीं किया गया हो।

13 करोड़ खातों का इस श्रेणी में आना एक गंभीर चिंता का विषय है, जो यह दर्शाता है कि बैंकिंग प्रणाली से जुड़ने के बावजूद, एक बड़ी आबादी अभी भी सक्रिय रूप से इसका उपयोग नहीं कर रही है।

क्यों निष्क्रिय हैं 13 करोड़ खाते? वजहों की पड़ताल

इतनी बड़ी संख्या में खातों के निष्क्रिय होने के पीछे कोई एक कारण नहीं है, बल्कि इसके कई सामाजिक और आर्थिक पहलू हैं।

  1. लक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण: 2014 में जब यह योजना शुरू हुई, तो इसे एक मिशन मोड में चलाया गया। बैंकों को हर घर में कम से-कम एक खाता खोलने का लक्ष्य दिया गया। इस हड़बड़ी में, कई ऐसे लोगों के भी खाते खोले गए जिन्हें शायद तत्काल इसकी आवश्यकता नहीं थी या जो पहले से ही किसी अन्य बैंक खाते का उपयोग कर रहे थे।

  2. डुप्लीकेट खाते: कई नागरिकों के पास पहले से ही एक नियमित बचत खाता था, लेकिन उन्होंने जन धन योजना के लाभों (जैसे बीमा) के लिए एक और खाता खुलवा लिया। समय के साथ, वे अपने प्राथमिक खाते का उपयोग करते रहे और जन धन खाता धीरे-धीरे निष्क्रिय हो गया।

  3. प्रवास (Migration): भारत में एक बड़ी आबादी काम के लिए एक शहर से दूसरे शहर पलायन करती है। अक्सर, वे अपने गांव में खोले गए जन धन खाते को छोड़ कर अपने नए कार्यस्थल पर एक नया खाता खोल लेते हैं, जिससे पुराना खाता निष्क्रिय हो जाता है।

  4. वित्तीय साक्षरता का अभाव: खाता खोलना एक बात है, लेकिन उसका उपयोग कैसे करना है, यह दूसरी बात है। ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में अभी भी बहुत से लोग डिजिटल बैंकिंग, एटीएम या अन्य सेवाओं का उपयोग करने में सहज नहीं हैं। जानकारी के अभाव में वे लेनदेन करने से बचते हैं।

  5. शून्य-शेष (Zero-Balance) की सुविधा: जन धन खातों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें न्यूनतम शेष राशि रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह एक वरदान है, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि जिन लोगों की आय बहुत कम या अनियमित है, वे इसमें पैसे रखने के लिए प्रेरित नहीं होते, जिससे खाते में कोई गतिविधि नहीं होती।

क्या यह योजना की विफलता है? सिक्के का दूसरा पहलू

13 करोड़ निष्क्रिय खातों का आंकड़ा निश्चित रूप से चिंताजनक है, लेकिन इसे योजना की पूर्ण विफलता करार देना जल्दबाजी होगी। हमें सिक्के के दूसरे पहलू को भी देखना होगा, जहां जन धन योजना ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की है।

  • वित्तीय समावेशन की क्रांति: 2014 से पहले, भारत की एक बड़ी आबादी बैंकिंग प्रणाली से बाहर थी। इस योजना ने 56 करोड़ से अधिक लोगों को औपचारिक बैंकिंग के दायरे में लाकर एक वित्तीय पहचान दी है। यह अपने आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

  • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) का आधार: जन धन योजना ने “JAM ट्रिनिटी” (जन धन-आधार-मोबाइल) की नींव रखी। इसने सरकार को अपनी कल्याणकारी योजनाओं (जैसे PM-KISAN, गैस सब्सिडी, पेंशन) का पैसा सीधे लाभार्थियों के खातों में भेजने में सक्षम बनाया। इससे भ्रष्टाचार और बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो गई। COVID-19 महामारी के दौरान करोड़ों महिलाओं के जन धन खातों में सीधे वित्तीय सहायता भेजना इसी मंच के कारण संभव हो पाया था।

  • महिला सशक्तिकरण: कुल खातों में से 56% से अधिक महिलाओं के नाम पर हैं। इसने महिलाओं को वित्तीय स्वायत्तता प्रदान की है और उन्हें बचत करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

  • क्रेडिट और बीमा तक पहुंच: जन धन खातों के साथ ₹10,000 तक की ओवरड्राफ्ट सुविधा और ₹2 लाख का दुर्घटना बीमा और ₹30,000 का जीवन बीमा कवर मिलता है। इसने गरीबों को साहूकारों के चंगुल से बचाने और उन्हें एक सामाजिक सुरक्षा कवच प्रदान करने में मदद की है।

इस दृष्टिकोण से, भले ही 13 करोड़ खाते निष्क्रिय हों, लेकिन 43 करोड़ से अधिक खाते सक्रिय हैं, जो एक विशाल संख्या है। एक निष्क्रिय खाता भी एक वित्तीय पहचान है, जिसे भविष्य में किसी भी DBT योजना के लिए फिर से सक्रिय किया जा सकता है।

आगे की चुनौती: पहुंच से सक्रिय जुड़ाव तक का सफर

ये आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि जन धन योजना का पहला चरण – यानी हर किसी तक पहुंच बनाना – काफी हद तक सफल रहा है। अब चुनौती दूसरे और अधिक कठिन चरण की है: लोगों को इन खातों का सक्रिय रूप से उपयोग करने के लिए कैसे प्रोत्साहित किया जाए?

इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है:

  • वित्तीय साक्षरता में वृद्धि: सरकार और बैंकों को मिलकर जमीनी स्तर पर वित्तीय साक्षरता शिविर आयोजित करने चाहिए, ताकि लोगों को डिजिटल लेनदेन, बीमा योजनाओं और क्रेडिट सुविधाओं का उपयोग करना सिखाया जा सके।

  • बैंक मित्र नेटवर्क को मजबूत करना: बैंक मित्र ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं की रीढ़ हैं। उन्हें बेहतर प्रशिक्षण और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है ताकि वे लोगों को लेनदेन करने में मदद कर सकें।

  • उत्पादों को जोड़ना: इन खातों को केवल DBT के लिए ही नहीं, बल्कि छोटे ऋण (माइक्रो-क्रेडिट), आजीविका के अवसरों और अन्य वित्तीय उत्पादों से जोड़ने की आवश्यकता है। जब लोगों को लगेगा कि खाते का सक्रिय उपयोग करने से उन्हें ऋण या अन्य लाभ मिल सकते हैं, तो वे इसका अधिक उपयोग करेंगे।

निष्कर्ष: आधा गिलास खाली या आधा भरा?

तो, 13 करोड़ निष्क्रिय जन धन खाते क्या दर्शाते हैं? यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे देखते हैं।

यह आधा खाली गिलास है यदि आप इस तथ्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि एक चौथाई लाभार्थी अभी भी सक्रिय रूप से बैंकिंग प्रणाली से नहीं जुड़े हैं, जो अंतिम-मील जुड़ाव (last-mile engagement) में एक बड़ी चुनौती का संकेत देता है।

लेकिन यह आधा भरा गिलास है यदि आप इस योजना की स्मारकीय सफलता को देखते हैं, जिसने 56 करोड़ लोगों को बैंकिंग से जोड़ा और सामाजिक सुरक्षा लाभों के वितरण के लिए एक मजबूत मंच तैयार किया।

सच्चाई यह है कि प्रधानमंत्री जन धन योजना ने भारत के वित्तीय परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया है। निष्क्रिय खातों की संख्या एक चेतावनी है कि अभी काम खत्म नहीं हुआ है। खाता खोलना केवल पहला कदम था; असली यात्रा अब इन खातों को हर भारतीय के लिए वित्तीय समृद्धि और सुरक्षा का प्रवेश द्वार बनाने की है।

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